IAS बनने से पहले की चर्चा, कोई छठीं फेल तो कोई थर्ड डिवीजन पास

अगर आप का बच्चा परीक्षा में कम मार्क्स हासिल कर रहा है और आप उसे बड़ा अफसर बनते देखना चाहते हैं तो ये खबर आपके लिए है… ज़्यादातर मां बाप अपने बच्चे के परीक्षा में सेकेण्ड, थर्ड डिवीजन या फिर कम अंक आने पर बहुत ज्यादा परेशान हो जाते हैं.. उनके सपने टूट कर बिखरने से लगते हैं

अगर आप का बच्चा परीक्षा में कम मार्क्स हासिल कर रहा है और आप उसे बड़ा अफसर बनते देखना चाहते हैं तो ये खबर आपके लिए है… ज़्यादातर मां बाप अपने बच्चे के परीक्षा में सेकेण्ड, थर्ड डिवीजन या फिर कम अंक आने पर बहुत ज्यादा परेशान हो जाते हैं.. उनके सपने टूट कर बिखरने से लगते हैं… क्योंकि उनका सपना बच्चे को अधिकारी बनते देखना था… उसके लिए अच्छे स्कूल में दाखिला कराया… अपना पेट काट कर मंहगी फीस  भरते रहे… मंहगी किताबें और ट्यूशन का भी बंदोबस्त किया… लेकिन ये क्या…? बच्चा तो वो कमाल नही कर रहा जिसकी उन्हें उम्मीद थी… स्कूल में न वो तेज़ बच्चों में शामिल हो पा रहा है न ही उसके अच्छे मार्क्स आ रहें हैं… फिर क्या मां बाप का स्ट्रेस लेवल बढ़ जाता है… वो बच्चे पर या तो हाईपर होने लगते हैं या फिर खुद डिप्रेशन में जाने लगते हैं.. और बच्चे को भी डिप्रेशन के रास्ते पर धकेल देते हैं… असल में आप गलत कर रहे हैं खुद के साथ और बच्चे के भी साथ… अगर आपके बच्चे का रिजल्ट अच्छा नहीं आया है तो निराश होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि परीक्षा में खराब नतीजे आने से करियर के सभी रास्ते बंद नहीं हो जाते। अगर यकीन नहीं होता, तो सोशल मीडिया पर वायरल इस IAS (Indian Administrative Service) अधिकारी की मार्कशीट देख लीजिए। साथ ही, इस बात को गांठ बांधकर रख लीजिए कि 10वीं और 12वीं की मार्कशीट के अंक ये तय नहीं करते कि आप जीवन में कितनी ऊंचाई तक जाएंगे! 2009 बैच के आईएएस अधिकारी अवनीश शरण की ये 10वीं की मार्कशीट बड़ी तेज़ी से वायरल हो रही है जो उन्होंने खुद सोशल मीडिया पर साझा की है। उन्होंने ‘बिहार स्कूल एग्जामिनेशन बोर्ड’ (Bihar School Examination bord) की यह परीक्षा 314/700 अंकों यानी थर्ड डिवीजन के साथ 1996 में पास की थी।

ये तो रही IAS अधिकारी अवनीश शरण की बात… अब हम आपको एक ऐसी लड़की की कहानी सुनायेंगे जो छठी क्लास में फेल हो गयी थी लेकिन उसने UPSC की परीक्षा में टॉप किया… उसने पहले ही attempt में UPSC की परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया… वो भी बिना किसी कोचिंग के… यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए छात्र कई सालों से तैयारी करते हैं और इसके लिए कई कोचिंग में शामिल होते हैं, लेकिन पंजाब के गुरदासपुर की रहने वाली रुक्मिणी रियार; उन्होंने बिना कोचिंग के यूपीएससी परीक्षा की तैयारी की और पहले ही प्रयास में दूसरा स्थान हासिल कर आईएएस अधिकारी बनने के अपने सपने को पूरा किया। लेकिन ये कहानी अधूरी है… आधी कहानी अभी बाकी है… वो आधी कहानी  हर उस मां बाप की आँखे खोल देगी जो अपने बच्चे की स्चूलिंग के दौरान कम नम्बर से परेशां हैं.. बिना कोचिंग के यूपीएससी परीक्षा में पहले ही प्रयास में दूसरा स्थान हासिल कर आईएएस अधिकारी बनने वाली रुक्मिणी रिरार 6ठी क्लास में फेल हो गयी थी… असल में  रुक्मिणी रियार की शुरूआती पढाई पंजाब के गुरदासपुर से हुई। इसके बाद वह चौथी क्लास में डलहौजी के सेक्रेड हार्ट स्कूल गईं। रुक्मिणी बचपन में पढ़ाई में होनहार नहीं थी। उनके मार्कश बहुत कम आते थे.. परेशां होकर परिवार ने उन्हें बोर्डिंग स्कूल भेज दिया। हालांकि तब भी उनका परफोर्मेंस नही सुधा.. हद तो तब हो गयी जब जब रुक्मिणी अपनी पढ़ाई के दौरान 6 वीं कक्षा में फेल हो गईं।

एक आम स्टूडेंट की तरह रुक्मिणी क्लास में फेल होने के बाद डिप्रेशन में रहने लगी। क्योंकि उनपर पढाई का बहुत ज्यादा दबाव था… वो असफलता से घबराने लगी थी… उन्हें फेल होने पर शर्म आती थी और परिवार, टीचर्स और दोस्तों के सामने जाने से डरती थी। कई महीनों तक तनाव में रहने के बाद, एक दिन  उन्होंने ठान लिया कि वह फिर कभी असफल नहीं होंगी और अपनी असफलता से प्रेरणा लेकर वह एक होनहार छात्रा के रूप में सामने आएंगी.. फिर क्या… रुमिनी पूरे मन से पढाई में जुट गयी.. 12वीं के बाद रुक्मिणी ने अमृतसर के गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी से सोशल साइंस में ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ मुंबई से सोशल साइंस में मास्टर डिग्री हासिल की और वहां गोल्ड मेडलिस्ट भी बनीं। पोस्ट-ग्रेजुएशन के बाद रुक्मिणी रियार ने योजना आयोग के अलावा मैसूर में अशोदया और मुंबई में अन्नपूर्णा महिला मंडल जैसे एनजीओ के साथ इंटर्नशिप की। इस दौरान रुक्मिणी सिविल सर्विसेज की ओर आकर्षित हुईं और उन्होंने आईएएस की तैयारी शुरू कर दी थी।

रुक्मिणी ने बिना कोचिंग के सेल्फ स्टडी की। उन्होंने फिर से छठी से बारहवीं कक्षा तक की एनसीईआरटी की किताबें पढना शुरू कर दिया.. इंटरव्यू के लिए रोजाना अखबार पढ़े..  कई मॉक टेस्ट में शामिल हुई। पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों को हल किया। कड़ी मेहनत और तैयारी के साथ,  यूपीएससी परीक्षा में बैठी और 2011 में, रुक्मिणी अखिल भारतीय रैंक में दूसरे स्थान पर रहीं। 12 साल बाद अब वो कलेक्टर हैं… ये कहानी और इस जैसी न जाने कितनी कहानियां हैं जो सच का आइना हैं.. जो हमें बेहतर भविष्य दिखाती हैं… इसलिए अगर आप के बच्चा अभी कम मार्क्स ला रहा है तो हौसला रखें और उसे भी बेहतर मार्गदर्शन और हौसला दें… क्योंकि न तो ज्यादा मार्क्स जीवन में सफलता की गारंटी देते हैं और न ही कम मार्क्स असफलता की…

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